Wednesday, March 16, 2011

अध्यात्म : मेरी नज़र में

  1. हर व्यक्ति का कर्म तय है ये हम सब जानते हैं। जिस प्रकार हम टीवी पर विभिन्न नाटकों को देखते हैं जिनमें आपस में कोई संबंध नहीं होता। ठीक उसी प्रकार ई के बनाए हुए कुछ नाटक इस ब्रम्हांड में हैं जिनमें आपस मे कोई संबंध नहीं है। जिनमें से एक नाटक का नाम है पृथ्वी।
  2. इस पृथ्वी पर जितने जीव विचरण कर रहें हैं। उन सबका कर्म तय है। उसके पूर्वजन्म के आधार पर हम कहतें है कि जो कुछ होता है। सब ईश्वर की मर्जी से होता है। सच है पर क्या हमने कभी यह सोचा है कि इस कर्म में हमारा योगदान ९९ प्रतिशत है और ईश्वर का १ प्रतिशत।
  3. ईश्वर ने एक नाटक की रचना की है। जिसमें हर जगह माया है उसकी महिमा है। जो उस माया को जान लेता है समझ जाता है उस समय से उस व्यक्ति की संसार से विरक्ति हो जाती है।
  4. इसमें भी दो बातें होती हैं। उसने तो एक बार हर व्यक्ति का भाग्य लिख दिया और उसे जीवन जीने के लिए भेज दिया है। और अब उसे पने कर्म करना है। कर्म कैसे करना है ये उन्होंने तय नहीं किया है कब करना है ये उन्होंने तय किया है।
  5. जो व्यक्ति इस कर्म, भाग्य, मोह के बंधन से उपर उठ जाता है तो वो उनसे जुड जाता है। और हर चीज को उनके नजरिये से देखता है। उन पर माया मोह का कोई असर नही होता। क्योंकि ये सब उनकी ही बनाई हुई है।
  6. अब एक व्यक्ति वो है जो उनसे जुडकर उनके पास आने के लिए व्याकुल हो जाता है। और दूसरा वो जो उन तक पहुंच तो गया है लेकिन अपनी इच्छा से धरती पर रहना चाहता है।
  7. अब ईश्वर कहते हैं कि वे हर जगह हैं। हवा में, पानी मे, धरती में, आकाश में, अग्नि में, वो इसलिए कि ये सब उनके ही अंग हैं। उनके ही निर्माण हैं। जब इस नाटक को उन्होंने बनाया है तो सभी चीजें जीव उनसे ही निर्मित हैं।
  8. अब बात यहां आती है कि उन्होंने हर व्यक्ति को अपने कर्म अपने हिसाब से करने की छूट दी है। उन्होंने कर्म तय किया है। उसे करने का तरीका नही। यह उसके पूर्वजन्म और इस जन्म से संबंधित है।
  9. यह जरूरी नहीं कि हर कर्म पूर्वजन्म से संबंधित हो कुछ कर्म इस जन्म में ही बनते है। और सही प्रकार से किया जाये तो इसी जन्म में खत्म भी होते हैं उसका अगले जन्म पर कोई प्रभाव नहीं है।
  10. कभी कभी ऐसा होता है कि व्यक्ति के कर्म करने का तरीका गलत हो जाता है तो उसे सही करने ईश्वर को भी धरती पर अवतरित होना पढ़ता है. तुम समझ रहे हो न मेरा मतलब! देखो मेरी जगह पर आकर, ईश्वर ने तो दुनिया का निर्माण कर दिया हर व्यक्ति का निर्माण और उसका भाग्य तय कर दिया। और वो उस हिसाब से जीवन जिया फिर उसका पुनर्जन्म हुआ। इस समय हमेशा ये कोशिश करते हॆ कि व्यक्ति नई जिंदगी नये तरीके से जिए। उसका अगला भाग्य उसके बीते हुए जन्म के कर्मों द्वारा तय किया जाता हॆ। व्यक्ति और समस्त जीवों का यह कर्म लगातार चलता रहता है। ये ठीक उस तरह से है जैसे कि किसी नाटक के अगले एपिसोड की स्क्रिप्ट तैयार होने के लिए डायरेक्टर के पास जाती है। एप्रूव होने के लिए। जिस प्रकार कोई डायरेक्टर किसी व्यक्ति के नेचर को उसके व्यक्तित्व को परिवर्तित नहीं कर सकता क्योंकि वो ईश्वर द्वारा बनाई गई है। ठीक उसी प्रकार ईश्वर भी किसी भी व्यक्ति के कर्म को तय करने के बाद उसे नहीं छेड़ते।
  11. जो तुम अंतरिक्ष में ९ ग्रहों को देखते हो। उस हर ग्रह की एक अलग पहचान होती है। उसकी अलग क्वालिटि होती है। और ये हर ग्रह अलग-२ प्रकार का चुंबकत्व रखता है। कुछ भावनाओं को नियंत्रित करते है। कुछ व्यवहार को कुछ दिमाग को और इस सब ग्रहों का प्रभाव एक मनुष्य के जीवन पर पड़ता है। इस अंतरिक्ष में केवल नौ ही ग्रह नहीं है। असंख्य ग्रह हैं। लेकिन हर ग्रह की एक लिमिट होती है। व्यक्ति पर मुख्यत: इन्हीं ग्रहों का प्रभाव पड़ता है।
  12. अब आ जाओ कुडली पर जिसने पहली बार कुडली बनाई थी उसने ग्रहों की ही गणना का ध्यान में रखा था। और तब से ये चली आ रही है। इसमें ये होता है कि जब काई जन्म लेता हे। तो उस समय जो ग्रहों की स्थिति होती है। वो उसके पूरे जीवन को प्रभावित करती है। ग्रह दो तरह से प्रभाव डालते हैं। एक तो जन्म समय पर स्थिति होती है वो, और दूसरे वो जो वर्तमान में चल रहे हैं। इन्हीं दोनों के संतुलन से जीवन चलता रहता है। अब जो व्यक्ति कुडली पढना जानते हैं। उन्हें हर चीज पता होती है। उस कुडली के आधार पर। और जो ज्यादा कुंडली पढना जानते हैं वे किसी भी ग्रह के प्रभाव को छेड सकते हैं।
  13. ईश्वर ने कभी कुंडली का विरोध नहीं किया बल्कि ये तो अच्छा है। उन्होंने भाग्य में समय के बंधन में जो रचना की है। उस के अनुसार हर व्यक्ति के जीवन में ग्रहों का मायाजाल है। किसी ग्रह का प्रभाव किसी की कुंडली पर ज्यादा है तो किसी का कम। अब जैसा मैंने पहले कहा भाग्य निर्धारित होता हॆ पूर्वजन्म के कर्म और इस जन्म के कुछ नये कर्मों के आधार पर। अब ईश्वर भी नहीं चाहते कि पूर्वजन्म के कर्मों का कोई फल इस जन्म में मिले लेकिन भी उनके अनुसार रचना पूर्वजन्म के आधार पर ही करनी होती हॆ। लेकिन सब ईश्वर की ही संतान हॆ वो किसी का बुरा कभी नही चाहते। तो जब तुम्हें कुंडली के ग्रह को छेडकर अपना भाग्य सुधारने का मौका मिलता है तो ईश्वर उसके विरोध में नहीं हॆ। अब जैसा मैंने कहा ”मौका“ ये मौका भी ईश्वर के ही द्वारा दिया जाता है जब उन्हे लगता है कि तुमने अपने कर्मों का पश्चाताप कर लिया है तो ईश्वर तुम्हें राह दिखाते हॆ अब ये तुम्हारी किस्मत है कि तुम उस राह पर चलते हो या नहीं। कहते हैं न समय से पहले और भाग्य से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता। अब ये समय और भाग्य दोनों ईश्वर के ही अधीन है। इसलिए उन्हे सब कुछ पता होता है।
  14. भाग्य बदलने के दो तरीके हैं पहला कुंडली के आधार पर जो भी ज्योतिषि बता दें। और दूसरा ईश्वर की आराधना के द्वारा। इसमें भी पहला वाला ज्यादा सरल है। और सीधा है। ईश्वर की आराधना का काम थोड़ा कठिन है। उसमें प्रतीक्षा करनी होती है। और फिर भी सब कुछ उनके ही उपर है। कर्म करना तुम्हारा धर्म है। और फल देना उनका कर्म है। किसे कितना फल देना है। ये केवय उनके उपर है।
  15. तो अब तक तो तुम समझ ही चुके हो कि जीवन का सत्य क्या है। ये जीवन भी एक अजीब पहेली है, हम इस पहेली को सुलझाने की कोशश करते हैं लेकिन ये हमारे समझ से परे होती है। हो सकता है कि ईश्वर द्वारा बुना हुआ एक मायाजाल है। हम जीवन के हर पल में कुछ नया सीखते हैं। जीवन का हर एक पल नया और उमंगभरा होता है। इसे केवल समझने की जरूरत होती है। हर व्यक्ति का कर्म तय है। उसे क्या काम करना है उसे कितना काम करना है। जीवन में क्या पाना है क्या सीखना है यदि हम जीवन को दूसरे नजरिये से देखें तो हम पायेंगे कि इस जीवन को जीते हुए समय के साथ साथ हम न जाने कितना कुछ सीख जाते है। उसमें से भी कुछ तो हमारे समझ में आ जाता है लेकिन कुछ हमारी समझ में बिलकुल नहीं आता और शायद हमे उसे समझने की कोशिश भी नही करनी चाहिये.

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