Tuesday, March 15, 2011

मेरी सोच

दोस्तों बहुत से मुझ जैसे लोग हैं जिन्हें ये ही नहीं पता कि उनका उद्देश्य क्या है? अब नहीं पता तो नहीं पता उसमें इतना सोचने वाली क्या बात है। मैं एक बात जानता हूं कि मुझे एक खुला आकाश चाहिए और मैं इसे किसी बंधन में बांधना नहीं चाहता। मान लीजिये कि मैंने अपने लिये कोई लक्ष्य निर्धारित कर लिया और उसी दिशा में अग्रसर होकर आगे बढ़ा और एक बड़ा डॉक्टर और इन्जीनियर बन गया। तो! ये तो एक डॉक्टर तक ही सीमित हो गया न। मतलब आपने क्या किया। आपने इस संपूर्ण आकाश की उंचाई में अपने लिये एक उंचाई निश्चित कर ली और उसे प्राप्त कर लिया। फिर आप कुछ और नहीं सोच पायेंगे, क्योंकि किसी भी उंचाई को पाने में इतना समय लग जाता है कि उसके बाद हम कोई और लक्ष्य बना कर उसकी ओर अग्रसर नहीं हो सकते। अब मैंने अपने लिए कोई लक्ष्य नहीं रखा तो इसका मतलब ये है कि मैंने अपने लिए इस संपूर्ण आकाश में कोई सीमा नहीं बनाई कि ये मेरे लिए मेरा एक आखिरी लक्ष्य है इसके बाद मुझे कुछ नहीं चाहिये। इतना मिल जाए तो मुझे संतुष्टि मिल जाएगी और जहां पर ये संतोष गया तो वहां आपके जीवन को जीने का मतलब खत्म। हमने देखा है कि लोग बच्चों से पूछते हैं कि तुम्हें क्या बनना है? अरे उसे क्या पता कि उसे क्या बनना है हां वो बात अलग है कि यदि आप किसी ग्रेजुएट से उसका लक्ष्य पूछें तो वो शायद किसी निर्णय पर पहुंच चुका हो, लेकिन वास्तविकता तो ये है कि जब आप अपनी पढ़ाई पूरी कर लें और जब अपने कार्यक्षेत्र से जुड़ जायें उसके बाद आपको बहुत सारी नयी चीजें देखने को मिलती हैं और आपको लगने लगता है कि जिस लाइन में मैं अभी हूं उससे बेहतर किसी दूसरी लाइन में कार्य कर सकता हूं और आप अपनी फील्ड ही परिवर्तित कर देते हैं अब इस समय आप उस लक्ष्य का क्या करेंगे जो आपने अपने लिये बनाया था। देखिये हमारा लक्ष्य इतना उंचा होना चाहिए कि हम उस लक्ष्य को पाने के साथ साथ इस दुनिया में कुछ नया कर सकें। या यूं कहें कि हमारे द्वारा पाये गये लक्ष्य को लोग अपने लिये लक्ष्य बना लें। सही लक्ष्य का निर्धारण होता है जब आप अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद से साल जॉब या बिजनेस कर चुके हों आपके सब कुछ समझ में आने लगता है। अब यदि आपने कोई लक्ष्य ही निर्धारित नहीं किया है तो आप हर तरफ koshish करेंगे और आपके हर कार्य में निपुणता जाएगी। और एक समय बाद आप हो जायेंगे बिलकुल परफेक्ट, जरूरी नहीं कि आप हर काम में बिलकुल परफेक्ट हों क्योंकि जब आप बहुत सारी फील्ड के बारे में अध्ययन करते हैं तो निश्चित ही आपको उनमें से कुछ अच्छी फील्ड मिल जाएंगी और आप उनमें से किसी एक या कुछ अन्य में विभन्न योग्यता हासिल कर सकेंगे। ये बात केवल उन लोगों के लिए है जिनके जीवन में वास्तव में कोई लक्ष्य नहीं है। अब यहां कुछ लोगों को लगेगा कि मैं हर तरफ हाथ मारने की बात कर रहा हूं तो ऐसा नहीं है आज के जमाने में हर वक्त नई नई चीजें रहीं है और हो सकता है कि उनमें से आपको कोई एक नई चीज अच्छी लगे और आप ये निश्चय कर लें कि ये फिल्ड मेरे लिये ज्यादा उपयुक्त है। तब क्या करेंगे? क्या जो काम कर रहे हैं उसे छोड़ देंगे। मेरा कहने का मतलब ये नहीं है कि आप लक्ष्य निर्धारित मत करें यदि आप कोई लक्ष्य निर्धारित कर रहे हैं तो उस लक्ष्य में उसके एंड पॉइंट तक जायें मतलब उसके बाद कुछ बचे ही (जो संभव नहीं है ) आप अपने बच्चों पर ये दवाब डालें कि नहीं तुझे तो डॉक्टर या इन्जीनियर में से ही कुछ बनना है। उसे अपने आप सोचने दें कि उसका दिमाग कहां चलता है हो सकता है कि जिसे आप डॉक्टर बनाना चाहते हैं क्योंकि आपके पूरे परिवार में सभी डॉक्टर हैं, वो किसी नई फिल्ड की तरफ ज्यादा झुकाव रखता हो, और यदि आप उसे अपने मनपसंद फील्ड के आकाश में उड़ने देंगे। तो वो उसमें आपकी उम्मीदों से कहीं ज्यादा खरा उतरेगा। क्योंकि जब वो अपने आप कुछ निश्चय करता है तो ये उसका खुद का निश्चय नहीं होता इस निश्चय में उस परम सत्ता का भी योगदान होता है, जो भविष्य में उसे प्रशिक्षण देने वाले हैं। अब ये प्रशिक्षण किस माध्यम से मिलना है ये हमारी समझ से परे होता है। इसलिये आजकल के माता-पिता अपने बच्चे को बाहर पढ़ने के लिए भेजते हैं ताकि वो इस दुनिया को समझकर अपने निर्णय खुद ले सके। और दुनिया के उस बहुमार्गीय स्थान से अपने लिए एक अच्छा मार्ग चुन सके। आगे की बात फिर कभी...

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