Thursday, March 24, 2011

माय थियोरी ऑफ लाइफ

आईये जीवन को और अच्छी तरह से समझते हैं ये जीवन एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसमें न जाने कितने ही उतार-चढ़ाव हैं न जाने कितने ही बहुमार्गीय रास्ते हैं और जो जन्म लेता है उसे उन मार्गों से गुजरना होता है क्योंकि ये जीवन वास्तव में एक पहेली है, हमने न्यूज पेपर में अक्सर देखा है कि बच्चों के कॉलम में एक पज़ल आती है जिसमें एक बॉक्स बना होता है उस बॉक्स के एकएक कॉर्नर पर एक जानवर होता है और दूसरे कॉर्नर पर कुछ हरी घास और हमसे कहा जाता है कि इस जानवर को उस हरी घास तक पहुंचाने का मार्ग बताईये और हम पेंसिल से न जाने कितने ही तरीके खोज निकालते हैं इस पज़ल के हल करने के लिए। ठीक इसी प्रकार एक मनुष्य का जीवन भी उस बॉक्स की तरह ही एक पहेली है एक और आप स्वयं खड़े हैं तो दूसरी ओर आपका अन्त या लक्ष्य। इन दोनों छोरों के बीच के मार्ग में बहुत सारी संभावनाएं हैं मतलब बहुत सारे रास्ते हैं मैं आपको इसका विवरण भी बाद में बताउंगा कि किस मार्ग से चलने से हमारा जीवन का सफर बहुत सुहाना हो सकता है। वास्तव में इस पूरे जीवन का सार उसका अन्त ही है हम पूरा जीवन जीते हैं केवल उस अन्त की प्रतीक्षा में। हम इस जीवन को जीते हुए न जाने कितना कुछ सीख जाता हैं और उस सारी सीख का अपने भविष्य के जीवन में उपयोग करते हैं। लेकिन इस पहेली में शुरुआत के पहले और अन्त के बाद भी जीवन है जो हमें नहीं पता होता। लेकिन उसका प्रभाव हमारे जीवन पर हमेशा होता है। यहां हमेशा ये ध्यान रखें कि इस पज़ल की शुरुआत और अन्त में भी एक गहरा संबंध है। शुरुआत के पहले भी कई संभावनाएं रहीं होती हैं और अन्त के बाद में भी कई संभावनाएं होती होंगी। अब जहां तक इस पज़ल का सवाल है इस गेम की शुरुआत से अंत तक जाने के लिए हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग मार्ग पहले से ही तय किये जा चुके हैं और जो किसी भी व्यक्ति विशेष को नहीं पता होता। बस व्यक्ति को तो अपने कर्म करना होता है रास्ता अपने आप बनता चला जाता है इस रास्ते का कोई नक्शा नहीं होता आप बस चलते रहें बाकी रास्ता तो खुद ही समझ में आने लगता है और जीवन के एक पढ़ाव में आने के बाद जब हम स्वयं का विशलेष करते है तो पाते है। कि एक व्यक्ति ने कौन सा मार्ग चुना है। और उसे अब उसी मार्ग पर चलना है या फिर उसे अपना मार्ग परिवर्तित कर देना चाहिए। बहुत से लोग अपना मार्ग प्रशस्त रखते है। लेकिन कुछ लोग अपना मार्ग परिवर्तित करना उचित समझते हैं क्योंकि उन्हें एक निश्चित समय के बाद पता चल जाता है। कि उसने जो मार्ग अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए चुना था उसमें कहीं न कहीं भटकाव है। लेकिन कुछ व्यक्ति जो पहले ही अपना लक्ष्य निश्चित कर चुके होते हैं उन्हें पता होता है कि मैं जिस मार्ग पर चल रहा हूं वही मेरे लिये उपयुक्त है।
इस खेल के कुछ नियम होते हैं जिसे हर खिलाड़ी को मानना होता है और ये एक ऐसा खेल है कि जिसने जन्म लिया है उसे ये खेल खेलना ही होता है। ये एक ऐसा खेल है जिसके लिए कोई कभी मना नहीं कर पाता क्योंकि इस खेल की शुरुआत अपने जन्म से पहले ही कर चुके होते हैं। जिसका आपको पता तब चलता है। जब आप अपने होश संभालते हैं जब आप अपने जीवन को समझना शुरू करते हैं। इस खेल के नियमों में उन समस्त बंधनों में बंधना आता है जो इश्वर द्वारा हमारे जीवनोपार्जन के लिए बनाये गये हैं इस जीवन का खेल हर व्यक्ति को पूरे जीवन भर खेलना होता है। जिसे वो कभी अकेला नहीं खेल सकता इस खेल को खेलने के लिए उसे कुछ साथियों की भी जरूरत होती है। जिसमें उस व्यक्ति का परिवार व समाज आते हैं ऐसा कभी नहीं होता कि कोई भी इस खेल में अकेला रहे। इश्वर द्वारा हर व्यक्ति को साथी दिये जाते हैं। जैसे जैसे ये खेल आगे बढ़ता जाता है। हर व्यक्ति इस खेल में पारंगत होता जाता है। उसे दुनिया की हर चीज समझ आने लगती है। लेकिन बहुत कम ही ऐसे खिलाड़ी होते हैं जो बिलकुल परफेक्ट होते हैं। जिन्हें हर नियम समझ में आ जाता है। क्योंकि इस खेल में नियम बहुत सारे हैं और अधिकतर लोगों को इस दुनिया के कुछ नियम जीवन भर समझ नहीं आते। आगे फिर कभी...

Wednesday, March 16, 2011

मेरे विचार

My Thoughts
प्रिय पाठकों/साथियों,
विचार, एक ऐसा शब्द है जो कि हर व्यक्ति के जीवन में अहम महत्व रखता है विचारों में एक ऐसी असीम शक्ति होती है जो उसे कहीं भी ले जाने का साहस रखती है। हर व्यक्ति के विचार अलग-अलग होते हैं यह विचार ही है जो व्यक्ति के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करते हैं यदि हम अच्छे विचारों को अपने अंदर समाहित करने की क्षमता रखते हैं तो इस संसार की कोई ताकत हमें आकाश की बुलंदियों को छूने से नहीं रोक सकती। इस संसार में बहुत कुछ ऐसा होता है कि हम उसे समझ नहीं पाते, उसे समझने की कोशिश करते हैं तो और भी उलझ जाते हैं। बहुत से लोगों के मन में कुछ ऐसे विचार होते हैं जिन्हें किसी के साथ बांटकर वे आकाश की बुलंदियों को छूने का साहस रखते हैं पर कुछ कह नहीं पाते। मेरी भी कुछ इच्छायें हैं मेरे भी कुछ सपने हैं जिन्हें मैं पूरा करना चाहता हूं और अपने विचारों को बताना चाहता हू। ऐसे तो बहुत से लोग है मेरे साथ जिनसे मैं अपनी बातें कह सकता हूं पर कुछ बातें ऐसी होती हैं जो हम बांट नहीं सकते केवल खुद ही महसूस कर सकते हैं। लेकिन कुछ पल की वे बातें हम कहीं भूल न जाएं वे कुछ सुनहरी यादें, किसी के साथ बिताये हुए कुछ पल, किसी के साथ रहने का अनुभव और भी बहुत सी ऐसी बातें हैं जो हम किसी के साथ बांट नहीं सकते। इसलिए उन्हें ताजा रखने के लिए उन्हें तस्वीरों में उतार लेते हैं या फिर समय के साथ साथ वे यादें भूल जाते है जिन्हें हम कभी भूलना नहीं चाहते। मैं जब भी बहुत उदास होता हू या बहुत खुश होता हूं और किसी से कुछ कहना चाहता हूं और यदि नहीं कह पाता तो अपने विचारों को कहीं लिख देता हूं। और उस पल को अपने शब्दों के जाल में बांधकर रख देता हूं जब कभी याद आती है पढ़कर उन्हें ताजा कर लेता हूं। मैं यह जानता हूं कि मुझे ये मानव जीवन बड़ी मुश्किल से मिला है पर मेरे लिए ये जीवन तभी सार्थक होगा। जब मैं इश्वर द्वारा दिए गए लक्ष्य में सफल हो जाऊं नहीं तो इस जीवन का कोई औचित्य ही नही है।
जीतेश

अध्यात्म : मेरी नज़र में

  1. हर व्यक्ति का कर्म तय है ये हम सब जानते हैं। जिस प्रकार हम टीवी पर विभिन्न नाटकों को देखते हैं जिनमें आपस में कोई संबंध नहीं होता। ठीक उसी प्रकार ई के बनाए हुए कुछ नाटक इस ब्रम्हांड में हैं जिनमें आपस मे कोई संबंध नहीं है। जिनमें से एक नाटक का नाम है पृथ्वी।
  2. इस पृथ्वी पर जितने जीव विचरण कर रहें हैं। उन सबका कर्म तय है। उसके पूर्वजन्म के आधार पर हम कहतें है कि जो कुछ होता है। सब ईश्वर की मर्जी से होता है। सच है पर क्या हमने कभी यह सोचा है कि इस कर्म में हमारा योगदान ९९ प्रतिशत है और ईश्वर का १ प्रतिशत।
  3. ईश्वर ने एक नाटक की रचना की है। जिसमें हर जगह माया है उसकी महिमा है। जो उस माया को जान लेता है समझ जाता है उस समय से उस व्यक्ति की संसार से विरक्ति हो जाती है।
  4. इसमें भी दो बातें होती हैं। उसने तो एक बार हर व्यक्ति का भाग्य लिख दिया और उसे जीवन जीने के लिए भेज दिया है। और अब उसे पने कर्म करना है। कर्म कैसे करना है ये उन्होंने तय नहीं किया है कब करना है ये उन्होंने तय किया है।
  5. जो व्यक्ति इस कर्म, भाग्य, मोह के बंधन से उपर उठ जाता है तो वो उनसे जुड जाता है। और हर चीज को उनके नजरिये से देखता है। उन पर माया मोह का कोई असर नही होता। क्योंकि ये सब उनकी ही बनाई हुई है।
  6. अब एक व्यक्ति वो है जो उनसे जुडकर उनके पास आने के लिए व्याकुल हो जाता है। और दूसरा वो जो उन तक पहुंच तो गया है लेकिन अपनी इच्छा से धरती पर रहना चाहता है।
  7. अब ईश्वर कहते हैं कि वे हर जगह हैं। हवा में, पानी मे, धरती में, आकाश में, अग्नि में, वो इसलिए कि ये सब उनके ही अंग हैं। उनके ही निर्माण हैं। जब इस नाटक को उन्होंने बनाया है तो सभी चीजें जीव उनसे ही निर्मित हैं।
  8. अब बात यहां आती है कि उन्होंने हर व्यक्ति को अपने कर्म अपने हिसाब से करने की छूट दी है। उन्होंने कर्म तय किया है। उसे करने का तरीका नही। यह उसके पूर्वजन्म और इस जन्म से संबंधित है।
  9. यह जरूरी नहीं कि हर कर्म पूर्वजन्म से संबंधित हो कुछ कर्म इस जन्म में ही बनते है। और सही प्रकार से किया जाये तो इसी जन्म में खत्म भी होते हैं उसका अगले जन्म पर कोई प्रभाव नहीं है।
  10. कभी कभी ऐसा होता है कि व्यक्ति के कर्म करने का तरीका गलत हो जाता है तो उसे सही करने ईश्वर को भी धरती पर अवतरित होना पढ़ता है. तुम समझ रहे हो न मेरा मतलब! देखो मेरी जगह पर आकर, ईश्वर ने तो दुनिया का निर्माण कर दिया हर व्यक्ति का निर्माण और उसका भाग्य तय कर दिया। और वो उस हिसाब से जीवन जिया फिर उसका पुनर्जन्म हुआ। इस समय हमेशा ये कोशिश करते हॆ कि व्यक्ति नई जिंदगी नये तरीके से जिए। उसका अगला भाग्य उसके बीते हुए जन्म के कर्मों द्वारा तय किया जाता हॆ। व्यक्ति और समस्त जीवों का यह कर्म लगातार चलता रहता है। ये ठीक उस तरह से है जैसे कि किसी नाटक के अगले एपिसोड की स्क्रिप्ट तैयार होने के लिए डायरेक्टर के पास जाती है। एप्रूव होने के लिए। जिस प्रकार कोई डायरेक्टर किसी व्यक्ति के नेचर को उसके व्यक्तित्व को परिवर्तित नहीं कर सकता क्योंकि वो ईश्वर द्वारा बनाई गई है। ठीक उसी प्रकार ईश्वर भी किसी भी व्यक्ति के कर्म को तय करने के बाद उसे नहीं छेड़ते।
  11. जो तुम अंतरिक्ष में ९ ग्रहों को देखते हो। उस हर ग्रह की एक अलग पहचान होती है। उसकी अलग क्वालिटि होती है। और ये हर ग्रह अलग-२ प्रकार का चुंबकत्व रखता है। कुछ भावनाओं को नियंत्रित करते है। कुछ व्यवहार को कुछ दिमाग को और इस सब ग्रहों का प्रभाव एक मनुष्य के जीवन पर पड़ता है। इस अंतरिक्ष में केवल नौ ही ग्रह नहीं है। असंख्य ग्रह हैं। लेकिन हर ग्रह की एक लिमिट होती है। व्यक्ति पर मुख्यत: इन्हीं ग्रहों का प्रभाव पड़ता है।
  12. अब आ जाओ कुडली पर जिसने पहली बार कुडली बनाई थी उसने ग्रहों की ही गणना का ध्यान में रखा था। और तब से ये चली आ रही है। इसमें ये होता है कि जब काई जन्म लेता हे। तो उस समय जो ग्रहों की स्थिति होती है। वो उसके पूरे जीवन को प्रभावित करती है। ग्रह दो तरह से प्रभाव डालते हैं। एक तो जन्म समय पर स्थिति होती है वो, और दूसरे वो जो वर्तमान में चल रहे हैं। इन्हीं दोनों के संतुलन से जीवन चलता रहता है। अब जो व्यक्ति कुडली पढना जानते हैं। उन्हें हर चीज पता होती है। उस कुडली के आधार पर। और जो ज्यादा कुंडली पढना जानते हैं वे किसी भी ग्रह के प्रभाव को छेड सकते हैं।
  13. ईश्वर ने कभी कुंडली का विरोध नहीं किया बल्कि ये तो अच्छा है। उन्होंने भाग्य में समय के बंधन में जो रचना की है। उस के अनुसार हर व्यक्ति के जीवन में ग्रहों का मायाजाल है। किसी ग्रह का प्रभाव किसी की कुंडली पर ज्यादा है तो किसी का कम। अब जैसा मैंने पहले कहा भाग्य निर्धारित होता हॆ पूर्वजन्म के कर्म और इस जन्म के कुछ नये कर्मों के आधार पर। अब ईश्वर भी नहीं चाहते कि पूर्वजन्म के कर्मों का कोई फल इस जन्म में मिले लेकिन भी उनके अनुसार रचना पूर्वजन्म के आधार पर ही करनी होती हॆ। लेकिन सब ईश्वर की ही संतान हॆ वो किसी का बुरा कभी नही चाहते। तो जब तुम्हें कुंडली के ग्रह को छेडकर अपना भाग्य सुधारने का मौका मिलता है तो ईश्वर उसके विरोध में नहीं हॆ। अब जैसा मैंने कहा ”मौका“ ये मौका भी ईश्वर के ही द्वारा दिया जाता है जब उन्हे लगता है कि तुमने अपने कर्मों का पश्चाताप कर लिया है तो ईश्वर तुम्हें राह दिखाते हॆ अब ये तुम्हारी किस्मत है कि तुम उस राह पर चलते हो या नहीं। कहते हैं न समय से पहले और भाग्य से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता। अब ये समय और भाग्य दोनों ईश्वर के ही अधीन है। इसलिए उन्हे सब कुछ पता होता है।
  14. भाग्य बदलने के दो तरीके हैं पहला कुंडली के आधार पर जो भी ज्योतिषि बता दें। और दूसरा ईश्वर की आराधना के द्वारा। इसमें भी पहला वाला ज्यादा सरल है। और सीधा है। ईश्वर की आराधना का काम थोड़ा कठिन है। उसमें प्रतीक्षा करनी होती है। और फिर भी सब कुछ उनके ही उपर है। कर्म करना तुम्हारा धर्म है। और फल देना उनका कर्म है। किसे कितना फल देना है। ये केवय उनके उपर है।
  15. तो अब तक तो तुम समझ ही चुके हो कि जीवन का सत्य क्या है। ये जीवन भी एक अजीब पहेली है, हम इस पहेली को सुलझाने की कोशश करते हैं लेकिन ये हमारे समझ से परे होती है। हो सकता है कि ईश्वर द्वारा बुना हुआ एक मायाजाल है। हम जीवन के हर पल में कुछ नया सीखते हैं। जीवन का हर एक पल नया और उमंगभरा होता है। इसे केवल समझने की जरूरत होती है। हर व्यक्ति का कर्म तय है। उसे क्या काम करना है उसे कितना काम करना है। जीवन में क्या पाना है क्या सीखना है यदि हम जीवन को दूसरे नजरिये से देखें तो हम पायेंगे कि इस जीवन को जीते हुए समय के साथ साथ हम न जाने कितना कुछ सीख जाते है। उसमें से भी कुछ तो हमारे समझ में आ जाता है लेकिन कुछ हमारी समझ में बिलकुल नहीं आता और शायद हमे उसे समझने की कोशिश भी नही करनी चाहिये.

जीवन का मूल मंत्र

हर कार्य को अपना बेस्ट एफर्ट लगाकर संपन्न करो क्योंकि ये जो समय है वो फिर वापस नहीं आयेगा। ये मत सोचो कि भविष्य की गर्त में क्या है। या ये जो आप आज कर रहे हो वो आगे काम आयेगा या नहीं। आप ये सोचें कि जो कार्य आप कर रहे हैं वो आखिरी है वास्तव में उस समय का वो आखिरी काम ही होगा। नया समय-नया कार्य। और हमें चाहिए कि हम हर कार्य को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करें। जिससे बेहतर हम तो कर ही नहीं सकते। अब कार्य कौन सा हे तो हर वो कार्य जो हमारी रोज के जीवन में शामिल हैं यहां तक कि मैं अभी लिख रहा हूं तो मैं ये सोचकर लिख रहा हूं कि जो विचार अभी मेरे दिमाग में आ रहे हैं कि वो फिर कभी नहीं आयेंगे।

Tuesday, March 15, 2011

मेरी सोच

दोस्तों बहुत से मुझ जैसे लोग हैं जिन्हें ये ही नहीं पता कि उनका उद्देश्य क्या है? अब नहीं पता तो नहीं पता उसमें इतना सोचने वाली क्या बात है। मैं एक बात जानता हूं कि मुझे एक खुला आकाश चाहिए और मैं इसे किसी बंधन में बांधना नहीं चाहता। मान लीजिये कि मैंने अपने लिये कोई लक्ष्य निर्धारित कर लिया और उसी दिशा में अग्रसर होकर आगे बढ़ा और एक बड़ा डॉक्टर और इन्जीनियर बन गया। तो! ये तो एक डॉक्टर तक ही सीमित हो गया न। मतलब आपने क्या किया। आपने इस संपूर्ण आकाश की उंचाई में अपने लिये एक उंचाई निश्चित कर ली और उसे प्राप्त कर लिया। फिर आप कुछ और नहीं सोच पायेंगे, क्योंकि किसी भी उंचाई को पाने में इतना समय लग जाता है कि उसके बाद हम कोई और लक्ष्य बना कर उसकी ओर अग्रसर नहीं हो सकते। अब मैंने अपने लिए कोई लक्ष्य नहीं रखा तो इसका मतलब ये है कि मैंने अपने लिए इस संपूर्ण आकाश में कोई सीमा नहीं बनाई कि ये मेरे लिए मेरा एक आखिरी लक्ष्य है इसके बाद मुझे कुछ नहीं चाहिये। इतना मिल जाए तो मुझे संतुष्टि मिल जाएगी और जहां पर ये संतोष गया तो वहां आपके जीवन को जीने का मतलब खत्म। हमने देखा है कि लोग बच्चों से पूछते हैं कि तुम्हें क्या बनना है? अरे उसे क्या पता कि उसे क्या बनना है हां वो बात अलग है कि यदि आप किसी ग्रेजुएट से उसका लक्ष्य पूछें तो वो शायद किसी निर्णय पर पहुंच चुका हो, लेकिन वास्तविकता तो ये है कि जब आप अपनी पढ़ाई पूरी कर लें और जब अपने कार्यक्षेत्र से जुड़ जायें उसके बाद आपको बहुत सारी नयी चीजें देखने को मिलती हैं और आपको लगने लगता है कि जिस लाइन में मैं अभी हूं उससे बेहतर किसी दूसरी लाइन में कार्य कर सकता हूं और आप अपनी फील्ड ही परिवर्तित कर देते हैं अब इस समय आप उस लक्ष्य का क्या करेंगे जो आपने अपने लिये बनाया था। देखिये हमारा लक्ष्य इतना उंचा होना चाहिए कि हम उस लक्ष्य को पाने के साथ साथ इस दुनिया में कुछ नया कर सकें। या यूं कहें कि हमारे द्वारा पाये गये लक्ष्य को लोग अपने लिये लक्ष्य बना लें। सही लक्ष्य का निर्धारण होता है जब आप अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद से साल जॉब या बिजनेस कर चुके हों आपके सब कुछ समझ में आने लगता है। अब यदि आपने कोई लक्ष्य ही निर्धारित नहीं किया है तो आप हर तरफ koshish करेंगे और आपके हर कार्य में निपुणता जाएगी। और एक समय बाद आप हो जायेंगे बिलकुल परफेक्ट, जरूरी नहीं कि आप हर काम में बिलकुल परफेक्ट हों क्योंकि जब आप बहुत सारी फील्ड के बारे में अध्ययन करते हैं तो निश्चित ही आपको उनमें से कुछ अच्छी फील्ड मिल जाएंगी और आप उनमें से किसी एक या कुछ अन्य में विभन्न योग्यता हासिल कर सकेंगे। ये बात केवल उन लोगों के लिए है जिनके जीवन में वास्तव में कोई लक्ष्य नहीं है। अब यहां कुछ लोगों को लगेगा कि मैं हर तरफ हाथ मारने की बात कर रहा हूं तो ऐसा नहीं है आज के जमाने में हर वक्त नई नई चीजें रहीं है और हो सकता है कि उनमें से आपको कोई एक नई चीज अच्छी लगे और आप ये निश्चय कर लें कि ये फिल्ड मेरे लिये ज्यादा उपयुक्त है। तब क्या करेंगे? क्या जो काम कर रहे हैं उसे छोड़ देंगे। मेरा कहने का मतलब ये नहीं है कि आप लक्ष्य निर्धारित मत करें यदि आप कोई लक्ष्य निर्धारित कर रहे हैं तो उस लक्ष्य में उसके एंड पॉइंट तक जायें मतलब उसके बाद कुछ बचे ही (जो संभव नहीं है ) आप अपने बच्चों पर ये दवाब डालें कि नहीं तुझे तो डॉक्टर या इन्जीनियर में से ही कुछ बनना है। उसे अपने आप सोचने दें कि उसका दिमाग कहां चलता है हो सकता है कि जिसे आप डॉक्टर बनाना चाहते हैं क्योंकि आपके पूरे परिवार में सभी डॉक्टर हैं, वो किसी नई फिल्ड की तरफ ज्यादा झुकाव रखता हो, और यदि आप उसे अपने मनपसंद फील्ड के आकाश में उड़ने देंगे। तो वो उसमें आपकी उम्मीदों से कहीं ज्यादा खरा उतरेगा। क्योंकि जब वो अपने आप कुछ निश्चय करता है तो ये उसका खुद का निश्चय नहीं होता इस निश्चय में उस परम सत्ता का भी योगदान होता है, जो भविष्य में उसे प्रशिक्षण देने वाले हैं। अब ये प्रशिक्षण किस माध्यम से मिलना है ये हमारी समझ से परे होता है। इसलिये आजकल के माता-पिता अपने बच्चे को बाहर पढ़ने के लिए भेजते हैं ताकि वो इस दुनिया को समझकर अपने निर्णय खुद ले सके। और दुनिया के उस बहुमार्गीय स्थान से अपने लिए एक अच्छा मार्ग चुन सके। आगे की बात फिर कभी...

मेरे कुछ प्रश्न

  1. मेरा जन्म क्यों हुआ है? मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है
  2. मनुष्य का जन्म क्यों होता है। क्यूँ कहा जाता है कि हर कार्य पूर्व जन्म पर आधारित होता है?
  3. इच्छाएं कहां से आती है? मन क्या है क्यों करता है मन, किसी चीज को करने के लिए।
  4. ये समय क्या है ये अपनी गति से ही क्यों चलता है इसे संचालित कौन करता है?
  5. पराशक्ति क्या है।
  6. ये भावनाएं क्या होती हैं। कहां से आती है?
  7. हम किसी चीज के प्रति आकर्षित क्यूँ होते हैं ? आकर्षण क्या है?
  8. क्या है ये दिमाग ? विज्ञान कहता है कि हम अपने दिमाग का ३-६ प्रतिशत ही उपयोग करते हैं तो फिर यदि व्यक्ति बाकी का ९०-९५ प्रतिशत करने लगे तो क्या होगा। और वो क्यों नहीं कर पाता?
  9. मैं कल्पना करता हूं उस समय की जब इस धरती पर कोई इन्सान नहीं था केवल सिर्फ झरने नदी पेड़ पहाड आकाश और न जाने कितनी प्राकृतिक चीजें। मैं जाना चाहता हूं उस समय में जहां कुछ भी नही था। तब ये संसार कैसा था?
  10. सोचो यदि ये प्रश्न ही न होते तो कैसा होता यदि हम कभी कुछ सोचें ही नहीं तो केसा हो। कोई सवाल कभी पैदा ही न होतो कैसा हो? क्यों सोचते हैं हम? क्या सोचते हैं? ये सोच आती कहाँ से है?