Wednesday, December 23, 2009

ईश्वर का अदृश्य प्रशिक्षण

Invisible Training of God
जब भी आप frustration की स्थिति में हों या आपको लगे कि आपकी कोई कद्र नहीं है ऐसा होता है कई बार कि आपको inferiority complex का सामना करना पडता है क्योंकि हर field आपके लिए नहीं बनी हर field में आप निपुण नहीं हो सकते लेकिन फिर भी यदि आप कोशिश करते हैं तो उसमें कई बार असफलता हाथ लगती है। और आप निराश होते हैं जबकि आपको नहीं होना चाहिए। क्योंकि जो चीज आपके लिए बनी ही नहीं तो आप क्यों कोशिश करते है कि हर चीज आपकी हो जाए। अब एक इंजीनियर सोचे कि मैं डॉक्टर की तरह बीमारियां सही करने लग जाउं। और एक डॉक्टर सोचे कि मैं डाक्टरी छोडकर कम्प्यूटर पर प्रोग्रामिंग करने लगूं और साफ्टवेयर तैयार कर लूं तो ऐसा नहीं हो सकता। भई आपने जिस कार्यक्षेत्र में निपुणता हासिल की है। आपको उसी में आगे बढ़ना चाहिए। और यदि आप इधर उधर हाथ मारेंगे और न बनने पर आप सोचेंगे कि आप किसी काम के नहीं है। तो यह गलत है। इस समय आप को केवल यह सोचना है कि आपका जन्म किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए हुआ है। और ईश्वर ने आपको उसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया है। इस प्रशिक्षण मे सारी पढ़ाई, सारा समय, सारे रिश्तों की समझ आदि आ जाता है। क्योंकि ये प्रशिक्षण कोई साधारण प्रशिक्षण नहीं है। ये एक विशेष प्रशिक्षण होता है। जिसकी समय अवधि आपको पता नहीं होती। क्योंकि इस प्रशिक्षण को प्रदान करने वाला कोई अध्यापक कोई कंपनी या कोई गुरु नहीं है ये प्रशिक्षण देने वाला वो ईश्वर है जो अदृश्य है। जिस प्रशिक्षण के सूत्र को आप कई कोशिशें करके भी समझ नहीं पाएंगे। आपको तो केवल अपना जीवन जीना है। एक निश्चित समय बाद जब आप आपने जिये हुए जीवन का अवलोकन करेंगे तो आप पाएंगे कि आपने वास्तव में बहुत कुछ सीखा है। और यही अवलोकन आपके प्रशिक्षण की पूर्णता आपको बताएगा। ''आपको हमेशा ये याद रखना है कि आपको अपना उद्देश्य नहीं छोडना है। आपका जन्म जिस कार्य के लिए हुआ है वो तो आपको करना ही है।``

Thursday, September 17, 2009

इच्छाएं

Wants

हर बच्चे के माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा एक बहुत बड़ा आदमी बने। बहुत नाम कमाये। इससे उस बच्चे का ही नाम नहीं होगा बल्कि उस उन्नति से उसके माता पिता को जो संतुष्टि होगी उसके बारे में शायद वो बच्चा सोच भी नहीं सकता। माता पिता जो कि एक बच्चे को उसके बचपन में एक एक चीज बताते हैं। उसे उसके बारे में और इस संसार के बारे में बताते हैं। कि ये संसार क्या है। उसके गुरू जो उसे आज के समय में दुनिया के साथ साथ चलने के लिए तैयार करते हैं। ताकि उसे भविष्य में किसी भी प्रकार की प्रतियोगिता में पीछे न देखना पड़े। पहले के गुरू अलग थे। वे बच्चों का मानसिक विकास के साथ साथ बौद्धिक विकास भी करते थे। उसे अपने भारत के धर्मों के इतिहास के बारे में दुनिया के बारे में ईश्वर की सत्ता के बारे में बताया जाता था। पर आजकल के गुंरू उसे यह सब नहीं बताते इस आधार के बारे में उसे कोई नहीं बताता। अब तो केवल वो उसे उपरी ज्ञान ही देते हैं। किसी भी बच्चे का बेस क्लियर नहीं है। यदि आज मैं किसी बच्चे या व्यक्ति से पूछूं कि हमारे कितने वेद और पुराण है। और उनमें क्या लिखा है। वो संख्या तो शायद बता देगा। लेकिन यह कभी नहीं बता पायेगा कि उनमें लिखा क्या है। मैंने ब्रम्ह पुराण का अध्ययन किया। वास्तव में जो चीज मैंने उसमें पढी मुझे आज तक नहीं पता थी। मैंने न जाने कितने सारे ग्रुप डिसकशन्स किये। न जाने कितने मंदिरों में गया। न जाने कितने बुद्धिजीवियों से मिला। लेकिन कभी इस बात पर चर्चा ही नहीं हुई कि वास्तव में पृथ्वी का निर्माण कैसे हुआ। मैं आज तक असमंजस में हूं कि वराह अवतार में भगवान ने पानी में से पृथ्वी को निकाला था। और संसार की उत्पत्ति हुई थी। और दूसरी ओर विज्ञान का कहना है कि पृथ्वी एक आग का गोला थी यह धीरे धीरे ठंडी हुई और इस पर जीवन शुरू हुआ। विज्ञान तथ्य प्रस्तुत करता है। लेकिन हमारे धर्म ग्रंथ केवल लिखे हुए हैं। उनका कोई प्रमाण नहीं देता। हमें केवल उनकी बातों को मानना होता है। मैं तो बात करते करते धर्म और विज्ञान की ही बात करने लगा। तो मैं कह रहा था कि ईश्वर ने एक दुनिया का निर्माण किया। उसके बाद उस पर जीवों को अवतरित किया। उसमें उन्हें जीवन जीने के समस्त साधन प्रदान किये। और जीने के लिए साथी दिये। ये साथी एक व्यक्ति का परिवार ही होते हैं। जिनके सहारे या यूं कहें कि जिनके लिए वो अपना जीवन गुजार देता है। यही सही है। आज इस ब्रम्हांड में इतने सारे लोग हैं। और सभी लोग एक न एक परिवार से जुडे हुए हैं। फिर वो चाहे भारत में हों या किसी अन्य देश में। परिवार में ज्यादा लोगों को नहीं लेते। माता पिता और बच्चे। बस इसके बाद कोई परिवार में नहीं आता। ये एक ऐसा परिवार है जिसे ईश्वर ने बनाया है। माता पिता का फर्ज होता है अपने बच्चों को सही सुविधा प्रदान करें। उसका सही अध्ययन कराये जितना जरूरी है अपनी सामर्थ्य के अनुसार। और बच्चों का फर्ज होता है कि अपने माता पिता की सेवा करें ताकि उन्हें कोई परेशानी न हो। अब आज क्या होता है। दुनिया में भौतिकता इतनी ज्यादा हो गई है। कि मेरी तन्ख्वाह यदि १०००० रू प्रति माह है। और मेरी सामर्थ्य अपने बच्चे को ३०० रू प्रति माह का शिक्षण प्रदान करने की है। और मेरे बच्चे चाहें कि उसे किसी बहुत अच्छे स्कूल में पढाउं क्योंकि पडौसी का बच्चा बहुत अच्छे स्कूल में पढता है। जिसकी फीस ही १००० प्रति माह है। मैं अपने बच्चे को इतने बडे स्कूल में तो नहीं पढा सकता लेकिन उसे सीधे मना भी नहीं कर सकता। क्योंकि ये बात उसकी समझ के परे हैं। फिर जब उसे धीरे धीरे समझ मंे आने लगता है कि रूपये क्या होते है। कैसे कमाये जाते हैं। तो फिर वो केवल अपनी क्षमता में रहकर ही अध्ययन करता है। और उसमें सफल होता है। और जब ज्यादा बडी पढ़ाई होती है। और बच्चे ज्यादा समझदार हो जाते हैं। तो उनमें फ्रस्टेशन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। मेरे ये समझ में नही आता कि पढाई एक समान होनी चाहिए। ये क्या हिंदी मिडियम और अंग्रेजी मिडियम लगा रखा है। मेरी एक बात बहुत अच्छे से समझ में आ गई है कि जो व्यक्ति सरस्वती शिशु मंदिर जैसे हिंदी मिडियम स्कूल में पढा है उसका बौद्धिक स्तर उन बच्चों की अपेक्षा बहुत अच्छा होता है जो कि किसी कान्वेंट स्कूल से पढा है। जरा जरा से बच्चों में हीन भावना का विकास हो रहा है। लोग कहते हैं कि ये तो हिंदी मिडियम का बच्चा है। ये भावना केवल अंग्रेजी मिडियम बच्चों में ही नहीं है। हिंदी माध्यम वालों में भी है। उन्हें ये लगता है कि ये जो अंग्रेजी माध्यम का बच्चा है वो हमसे ज्यादा तेज और होशियार है इस भूल में वे यदि थोड़े से होशियार होते भी हैं तो वे कुछ बोल नहीं पाते क्योंकि उनमें inferiority complex आ जाता है। ये तो नहीं होना चाहिए।