Sunday, January 10, 2010
महत्वाकांक्षा
दुनिया में बहुत सारे देश हैं। हर देश के हर व्यक्ति की अलग-अलग महत्वाकांक्षाएं हैं। हमारे देश का प्रचलन यह है कि यहां आजकल हर व्यक्ति विदेश जाना चाहता है। यह जानते हुए भी कि हमारे देश को देवों का देश कहा जाता है यह कहा जाता है कि भगवान श्री राम और श्री कृष्ण ने इस पूरी धरती में से भारत को ही चुना था अवतार लेने के लिए। फिर भी हम अपने देश को छोड़कर भाग जाना चाहते हैं। क्योंकि हमें पाश्चात्य संस्कृति ज्यादा पसंद आ रही है। हम भौतिकता की तरफ मुडते जा रहे हैं। हम दूसरे देशों में बिलकुल खुले हुए हैं वहां कोई बंदिश नहीं है क्योंकि वहां कोई अपना नहीं है। जो भी हैं केवल हम हैं जो करना चाहते हैं कर सकते हैं। दो बातें हैं एक व्यक्ति जो अपने व्यवसाय के सिलसिले में बाहर जाता है। तो वो गलत नहीं है क्योंकि कहीं न कहीं वह व्यक्ति हमारे देश को ही आगे बढ़ाने के लिए विदेश जा रहा है। यदि वो बाहर पढने के लिए भी जा रहा है तो गलत नहीं है मान लिया कि हमारे देश में ज्यादा उंची पढाई नहीं है और आज के जमाने में पढाई का ही महत्व है उसी के आधार पर अच्छी नौकरी मिलती है। ठीक है लेकिन दूसरे वो व्यक्ति जो वहां पढाई के साथ साथ वहीं रम जाने के लिए जाना चाहते हैं वहीं पर अपना सर्वस्व समर्पित कर देना चाहते हैं। अपने लोगों से दूर। उन्हें थोडा यह भी सोचना चाहिए कि जिन्होंने उन्हें जन्म दिया है वो कभी चाहकर भी तुमसे यह नहीं कहेंगे कि तुम अपना देश छोडकर हमें छोडकर यहां से दूर चले जाओ। क्योंकि वे तो केवल यही चाहते हैं कि तुम खुश रहो। और तुम उनसे कहते हो कि हमारी खुशी तो विदेश में ही है या यूं कहें आपसे दूर रहकर ही है। तो वे भला मना क्यों करेंगे वो कभी भी तुमसे मना नहीं कर सकते। अब यदि आप कहें कि लिखने वाले में होमसिकनेस है तो मान लिया कि हां मुझमें है। लेकिन यह भी सत्य है कि मैं उनसे दूर रह रहा हूं। और किसी आधार पर ही इतनी बात कर रहा हूंं। हो सकता था कि मेरा जन्म धरती पर न होता। हो सकता है कि मैं धरती पर ही किसी और जीव के रूप में जन्म लेता। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मैंने मनुष्य के रूप में जन्म लिया और अपना जीवन जी रहा हूं। और मेरे मन में इतने विचार आ रहे हैं। तो मैं लिख रहा हू
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